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Monday 2 March 2020

साल भर

मैंने साल भर जाग कर रातें देखी, लोगों की मुस्कुराहटें देखीं, और रोते लड़के देखे, मैंने अपने परिवार को देखा और उनकी बेबसी देखी, मैंने बहन को देखा और उसके सपने देखे। मैंने मंदिर में मूर्ति के पीछे और तुलसी के गमले में देखा।
मैंने दादी कि आंखो में देखा, मैंने गुरुजी से पूछा और शराबी से भी। मै साल भर दीवार बना रहा। मुझे वो नहीं मिली।

लोगों को प्यार नहीं मिलता,इज्जत नहीं मिलती, दहेज़ और फरेब नहीं मिलता।
मुझे सब मिला बस वो नहीं मिली। किसी मंदिर में, सड़क पर, दवाइयों से आसमान के तारों में या मेरे दोस्त की बातों में, मुझे  वो कभी नहीं मिली।

में अगले साल रात भर सोया, दिन भर पिया, दवाइयां,आंसू याद और धोखे। मै साल भर के लिए भगवान हो गया।
वो मेरे सिरहाने बैठे मेरा सिर सहला रही थी।
जन्नत जमीन हो गई थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ना चाहा,वो चली गई,
दवाइयां, आंसू सब बारिश बन गए मै कीचड़ हो गया।
मैं साल भर कीचड़ रहा, वो साल भर बारिश बन बरसी।
मैं जीवन भर कीचड़ रहूंगा, पर अब सूखा पड़ता है, कई सालों से बारिश नहीं हुई।
मैं सुखी मिट्टी हूं, जो जल्दी उद जाती है और आजकल हवा बहुत तेज हो गई है।


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